ओबीसी आरक्षण, भाजपा और मुसलमानों की बैचेनी

ओबीसी आरक्षण, भाजपा और मुसलमानों की बैचेनी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 अप्रैल 2024 को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए।

केएस मोबिन: मिनिस्टर ऑफ माइनोरिटी अफेयर्स स्मृति जुबिन ईरानी ने दो फरवरी 2023 काे संसद में एक सवाल के जवाब में MANF/मानफ (Maulana Azad National Fellowship) को लेकर जवाब दिया। उन्होंने बताया कि अल्पसंख्यक समुदाय के स्टूडेंट्स को मिलने वाली मानफ कई अन्य स्कीमों जैसे NFOBC (National Fellowship For Other Backward Classes) से ओवरलैप होती है इसलिए इसे डिस्कन्टिन्यू कर दिया गया है, यानी कि समाप्त कर दिया गया है।

यहां समझने वाली बात यह है कि… अल्पसंख्यकों में सबसे बड़ा वर्ग मुस्लिम है। एक अंदाजा लगाएं तो करीब 70 से 80 प्रतिशत मानफ का बेनिफिट मुस्लिमों को मिलता होगा। जब एक साल पहले संसद में भाजपा की बड़ी नेत्री और सेंट्रल कैबिनेट में मिनिस्टर श्रीमति ईरानी कह रहीं थी कि अल्पसंख्यक (मुसलमान) NFOBC में कवर हो जाते हैं तो 2024 में चल रहे चुनाव में मुस्लिम अल्पसंख्यक को ओबीसी में मिलने वाले फायदे पर नैरेटिव बनाकर मेजॉरिटी के मन में संदेह क्यों पैदा किया जा रहा है?

यह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। आरएसएस-भाजपा की सारी पॉलिटिक्स घूम-फिरकर मुसलमानों पर आ जाती है। हर रैली-सभा में 10 सालों के काम या अगले पांच सालों में अपने विजन (मेनिफेस्टो) को डिफेंड करने के बजाए मुसलमानों को बदनाम करने का काम सत्ताधारी पार्टी कर रही है। पूरे देश में एक भी सीट पर मुसलमान कैंडिडेट नहीं उतार रही भाजपा का मुसलमानों को लेकर एजेंडा क्या है? रोज के प्रोपगैंडा से असहज महसूस कर रहा मुसलमान अपना वोट कहां शिफ्ट करे?

इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों से मुसलमानों के लिए इतनी खाई तो खोद ही दी है कि ओबीसी में मिलने वाले रिजर्वेशन के प्रति भी इस कम्युनिटी को मेजोरिटी के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। कहां तो देश के बुद्धिजीवी वर्ग में डिस्कोर्स चलता था कि एससी (अनुसूचित जाति) की लिस्ट में मुसलमानों को राजनीतिक कारणों से शामिल नहीं किया गया है। अचानक, मुसलमानों के ओबीसी रिजर्वेशन पर नीचे ही नीचे बहस चल पड़ी है। अब आलम यह है कि 1990 में पहली बार लागू हुए अदर बैकवर्ड क्लासेज (ओबीसी) के 27 प्रतिशत आरक्षण में मिलने वाले लाभ से भी हाथ धोना पड़ सकता है।

संविधान में धर्म के आधार पर रिजर्वेशन का प्रावधान नहीं है, भारत के इस्लाम में भी जातियां हैं। जाति के आधार पर इस अफरमेटिव एक्शन का सहारा मुसलमानों को भी मिला, आने वाले 2-3 सालों में मुसलमानों के ओबीसी रिजर्वेशन पर बड़ा विरोध देखने को मिले तो हैरानी नहीं होगी। दलितों को मोबिलाइज करना शुरू भी कर दिया गया है।

इस बैचेनी में जाहिर है मुसलमान बेहतर विकल्प की तलाश करेगा। एक विकल्प सोशलिस्ट विचारों वाले क्षेत्रीय राजनीतिक दल हो सकते हैं या कांग्रेस के नेतृत्व में बने इंडिया ब्लॉक को समर्थन दे सकते हैं, और ऐसा करें भी क्यों न? कोई भी कम्युनिटी चाहती है कि चुनाव में उसके मुद्​दों को उठाया जाए। भाजपा तो चुनाव में ऐसा माहौल तैयार कर देती है कि जीने-मरने का सवाल एक आम मुसलमान के सामने खड़ा हो जाता है।

आलम यह है कि कोई मीडिया वाला मुस्लिम बस्ती में चुनाव को लेकर रिपोर्टिंग करने पहुंचे तो मुसलमान बोलने से बचता है या बोलता है तो पॉलिटिकल कैरक्ट वाला साइड अपनाता है। पिछले 10 सालों में इतना कुछ बदल गया है कि मुसलमान, अपना विरोध खुलकर दर्ज भी नहीं करा पा रहे। न्यूज चैनल आए दिन इस तरह के शो चलाते हैं जिसमें मुसलमान सीधा-सीधा विलेन होता है। एक सेंस ऑफ अदरनेस मुसलमानों में क्रिएट हो चुका है। यह अदरनेस इस कदर बढ़ गया है कि मुसलमान अपने ही मुल्क में थर्ड क्लास सिटिजन बनकर रह गए हैं।

भाजपा की शुरूआत से ही हिन्दूत्वा वाली पॉलिटिक्स रही है, इसमें मुसलमानों के लिए कितनी जगह है किसी से छिपा भी नहीं है। बात अन्य पार्टियों की करें तो, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया जोकि बामुश्किल दो-तीन प्रतिशत वोट बटोर पाती है के अलावा कोई ऐसा राष्ट्रीय राजनीतिक दल नहीं जो मुसलमानों के मुद्​दों को छूता भी है। हर पार्टी मुसलमानों को लेकर सेफ प्ले के मोड में चली जाती है।

बड़ी नेशनल और रिजनल पॉलिटिकल पार्टिज के इस सेफ प्ले मोड के कारण मुसलमानों को असद्दुदीन ओवैसी में एक नेता नजर आता है। हैदराबाद से निकलकर नॉर्थ इंडिया के कई मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी की एआइएमआइएम ने पहुंच बनाई है, कुछ सीटें भी जीतने में कामयाबी मिली है। इन सबके बावजूद वह मुसलमानों का भला उस तरह नहीं कर सकते जैसे कोई नेशनल लेवल पार्टी या वेल एस्टेब्लिश्ड रीजनल पार्टी कर सकती है।

आज की कांग्रेस को देखें तो राहुल गांधी के अलावा कोई नेता नजर नहीं आता जो मुसलमानों को लेकर एक सकारात्मक रवैय्या ही नहीं अपनाते बल्कि बिना किसी डर के आवाज भी बनते हैं। आजादी से पहले की इस पार्टी में वर्तमान में कोई दूसरा नेता नहीं है जो मुसलमानों को लेकर राहुल गांधी वाला अप्रोच अपनाता हो। राहुल गांधी की बहन व पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी भी मुसलमानों के लिए कोई खास आवाज उठाती नजर नहीं आती हैं।

जिस ओबीसी रिजर्वेशन में मुसलमानों को मिलने वाले फायदे से मेजोरिटी के माइंडसेट में माइनोरिटी को लेकर द्वंद पैदा किया जा रहा है उसकी हिस्ट्री भाजपा के फेवर में नहीं जाती। दिसंबर 1980 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी गई थी, लेकिन, अगले 10 वर्षाें तक कमीशन की रिपोर्ट की रिकमंडेशन लागू ही नहीं हो पाई। पहली बार वर्ष 1990 में प्राइम मिनिस्टर वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट की रिकम्डेंशन के तहत ओबीसी को 27 प्रतिशत का रिजर्वेशन सरकारी नौकरियों में दिया।

वीपी सिंह की जनता दल की सरकार को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से बाहरी समर्थन था।, उस वक्त की बीजेपी का नेतृत्व लाल कृष्ण आडवाणी कर रहे थे। प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने जिस मंडल कमीशन के तहत रिजर्वेशन दिया था, उस कमीशन की रिकमंडेशन में ही मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को ओबीसी में शामिल करने की असेसमेंट है। ऐसे में भाजपा और नरेंद्र मोदी चुनावी फायदे के लिए मुसलमानों को टारगेट कर रहे हैं तो वोटर्स को भी इस पार्टी की हिस्ट्री पढ़नी चाहिए। ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर ही पार्टी का मूल पक्ष क्या है यह आरएसएस की शाखाओं में जा कर पता किया जाना चाहिए।

(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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