दिल्ली से कन्हैया को टिकट मास्टरस्ट्रोक या मजबूरी
- इंडिया से नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली सीट पर इन्कम्बेंट मनोज तिवारी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे कन्हैया कुमार
- 2019 में जन्म स्थान बिहार की बेगूसराय से सीपीआई की टिकट पर प्रत्याशी रहे, गिरिराज सिंह से हारे
- फरवरी 2016 में पहली बार लाइमलाइट में आए कन्हैया, एंटी-नेशनल नारे लगाने के लगे थे आरोप
- 2015 में चुने गए जेएनयू-एसयू के प्रेसिडेंट, 2021 में ज्वाइन की कांग्रेस, 2023 से एनएसयूआई प्रभारी
कांग्रेस ने युवा नेता कन्हैया कुमार को दिल्ली की नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। बेशक, यह कांग्रेस पार्टी में कन्हैया के बढ़ते कद को दर्शाता है लेकिन दिल्ली से लोकसभा चुनाव में उन्हें उतारना क्या बड़ा मास्टरस्ट्रोक है या पार्टी की कोई मजबूरी है। दरअसल, कन्हैया कुमार मूलरूप से बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं। इससे पहले वह कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया (सीपीआई) की टिकट पर 2019 के आम चुनाव में अपने हाथ आजमा चुके हैं। जिसमें उन्हें भाजपा के प्रत्याशी गिरिराज सिंह से शिकस्त हासिल हुई थी। बिहार में इस बार कांग्रेेस, आरजेडी और सीपीआई गठबंधन में है। आरजेडी 26, कांग्रेस नौ और सीपीआई पांच सीटों पर बिहार में चुनाव लड़ेगी। सीपीआई ने पहले ही बेगूसराय से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था। बताया जा रहा है कि आरजेडी सीपीआई को यह सीट देने के लिए आसानी से मान गई
कन्हैया पहली बार लाइमलाइट में वर्ष 2016 में आए थे। इससे पहले वर्ष 2015 में जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के प्रेजिडेंट चुने गए थे। वह पीएचडी के स्टूडेंट थे। फरवरी 2016 में जेएनयू कैंपस में कथित एंटी-नेशनल नारे लगे। कन्हैया को स्टूडेंट यूनियन का प्रेसिडेंट होने के चलते गिरफ्तार किया गया था। मामले ने इतनी तूल पकड़ी थी कि कन्हैया पर देशद्रोह का मुकदमा तक चला था। हालांकि, किसी तरह के एंटी-नेशनल नारे लगाए जाने वाली भीड़ में वह शामिल नहीं थे। जो कथित वीडिया मीडिया में चल रहे थे उनसे भी छेड़छाड़ की बात सामने आई थी। कन्हैया ने वर्ष 2021 में कांग्रेस को ज्वाइन किया था, 2023 में कांग्रेस की यूथ विंग नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) का प्रभारी नियुक्त किया गया था।
लालू नहीं चाहते तेजस्वी का विकल्प बने कन्हैया
इंडिया (इंडी अलायंस) में शामिल बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नहीं चाहेगी कि भविष्य में कन्हैया उनकी लीडरशिप के लिए कोई खतरा बने। आरजेडी बिहार में मजबूत स्थिति में है। लालू प्रसाद यादव जोकि पार्टी के फाउंडर एवं वर्तमान में प्रेसिडेंट हैं अपने छोटे बेट तेजस्वी यादव को बिहार में मुख्यमंत्री बनाने का सपना देख रहे हैं। तेजस्वी यादव नीतिश कुमार के समर्थन से बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने पिछले तीन-चार सालों में पार्टी को मजबूत करने के साथ ही राज्य व देश की राजनीति में कद बड़ा किया है। वह 34 वर्ष के हैं और अपने वाले विधानसभा चुनाव पर नजर बनाए हुए हैं।
परिवारवाद से परे कन्हैया की खुद पहचान
कन्हैया कुमार जिन्होंने वाक-कला को पूरे देश में पहचान बनाई है वह तेजस्वी की छवि के लिए थ्रेट हैं। इसके कई कारण हैं। इसमें एक शिक्षा भी है। कन्हैया एक गरीब परिवार से संबंध रखते हैं, विश्वभर में प्रतिष्ठित जेएनयू से पीएचडी की है। तेजस्वी नौंवी कक्षा तक पढ़े हैं। परिवारवाद का नैरेटिव भी तेजस्वी के पक्ष में नहीं है। कन्हैया भारत की सबसे बड़ी और पुरानी राजनीतिक पार्टी में बिना किसी राजनीतिक विरासत से अपने दम पर इस मुकाम पर पहुंचे है। वह राहुल गांधी के करीबी भी माने जाते हैं। भविष्य में समीकरण बदलते हैं तो संभावना पूरी है कि कन्हैया बिहार में कांग्रेस का चेहरा बने। ऐसे में कन्हैया को बेगूसराय की बजाए दिल्ली से चुनाव लड़ाना कांग्रेस की इच्छा से ज्यादा गठबंधन को बिहार में बचाए रखने की जरूरत भी रही होगी।
दिल्ली में बिहार के ही सीटिंग एमपी मनोज तिवारी से मुकाबला
नाॅर्थ-ईस्ट सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी कन्हैया कुमार का मुकाबला सीटिंग एमपी मनोज तिवारी से होगा। वह भी मूलरूप से बिहार के हैं और गत दो चुनावों में जीत हासिल कर चुके हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में मनोज तिवारी ने तीन बार दिल्ली की सीएम रहीं कांग्रेस की वेटर्न शीला दीक्षित को साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। इस बार मनोज तिवारी के लिए मुकाबला आसान नहीं रहने वाला। दिल्ली में आम आदमी पार्टी जोकि इंडिया ब्लॉक की मेंबर है मजबूत पार्टी है। वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आप से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया था। ऐसे में गठबंधन का फायदा कन्हैया को मिल सकता है।
KS Mobein
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